Monday 7 July 2014

शंकराचार्य नेकी चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना

प्राचीन भारतीय सनातन परम्परा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार और प्रसार में आदि शंकराचार्य का महान योगदान है। उन्होंने भारतीय सनातन परम्परा को पूरे देश में फैलाने के लिये भारत के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठों (पूर्व में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी, पश्चिम में शारदामठ, गुजरात, उत्तर में ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम और दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वर) की स्थापना की थी। ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में स्थापित किये गये ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों के अलावा पूरे देश में बारह ज्योतिर्लिंगों की भी स्थापना की थी।

आदि शंकराचार्य को अद्वैत परम्परा का प्रवर्तक माना जाता है। उनका कहना था कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। हमें अपनी अज्ञानता के कारण ही ये दोनों अलग अलग प्रतीत होते हैं।

ये मठ गुरु शिष्य परम्परा के निर्वहन का प्रमुख केंद्र हैं। पूरे भारत में सभी संन्यासी अलग-अलग मठ से जुड़े होते हैं। इन मठों में शिष्यों को संन्यास की दीक्षा दी जाती है। संन्यास लेने के बाद दीक्षित नाम के बाद एक विशेषण लगा दिया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है। सभी मठ अलग-अलग वेद के प्रचारक होते हैं और इनका एक विशेष महावाक्य होता है। मठों को पीठ भी कहा जाता है। आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में अपने योग्यतम शिष्यों को मठाधीश बनाया था। यह परम्परा आज भी इन मठों में प्रचलित है। हर मठाधीश शंकराचार्य कहलाता है और अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बना देता है।

आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार मठ

1. श्रृंगेरी मठ

यह मठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम् में स्थित है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती और पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है और मठ के तहत 'यजुर्वेद' को रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे। वर्तमान में स्वामी भारती कृष्णतीर्थ इस मठ के 36 वें मठाधीश हैं।

2. गोवर्धन मठ

गोवर्धन मठ भारत उड़ीसा के पुरी में है। गोवर्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' और इस मठ के तहत 'ऋग्वेद' को रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद हुए। वर्तमान में निश्चलानंद सरस्वती इस मठ के 145 वें मठाधीश हैं।

3. शारदा मठ

शारदा (कालिका) मठ गुजरात में द्वारकाधाम में है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' और इसमें 'सामवेद' को रखा गया है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। वर्तमान में स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती इस मठ के 79 वें मठाधीश हैं।

4. ज्योतिर्मठ

ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है। ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है। इस मठ के अंतर्गत अथर्ववेद को रखा गया है। ज्योतिर्मठ के पहले मठाधीश आचार्य तोटक बनाए गए थे। वर्तमान में कृष्णबोधाश्रम इस मठ के 44 वें मठाधीश हैं।इन चार मठों के अलावा तमिलनाडु स्थित कांची मठ को भी शंकराचार्य द्वारा स्थापित किया हुआ माना जाता है लेकिन यह विवादित माना गया है। वर्तमान में इस मठ के मठाधीश स्वामी जयेंद्र सरस्वती है।

Sunday 29 June 2014

हमसे ही हो रही है ये गलतियां



शहर में चाय की चौपाटी हो या अन्य कोई खाने पीने की दुकानें, मंदिर-मस्जिद या रेलवे स्टेशन हर जगह आम तौर एक समस्या हर किसी को देखने को मिलती है वो है भिक्षावृत्ती की समस्या, कोई अपने अपाहिज होने की दुहाई देता है तो कोई अपने हालात को बयां करता है।

ये सब समस्याएं तो  समझ भी आती है, लेकिन जब कोई बाल्टी के अंदर शनि महाराज की मूर्ति की गर्दन तक का तेल भरकर जब जय शनि देव कहता है तब लगता है कि अब अति हो रही है।

जिनके हाथ पैर भी सहीं सलामत है, जो शरीर से भी हट्टे-कट्टे है वो भी बाल्टी और अन्य भिक्षा मांगने के साधन लेकर चल देता है।

भोपाल शहर में ही बड़े लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है और वर्तमान समय में इसका दायरा और बढ़ता ही जा रहा है। समझ नहीं आता है कि क्या ये लोग कायर हैं ..? या सचमूच ही इनकी अपनी कोई ऐसी मजबूरियां है जो इन्हें ऐसा काम करने पर मजबूर  करती है। अगर ये लोग चाहे तो कोई भी रोजगार को अपना सकते हैं जो इनके लिए रोजी-रोटी का साधन बन सकता है।

इन्हीं लोगों के छोटे-छोटे बच्चे जिनकी अभी पढ़ने लिखने की उम्र है, उन्हें भी शिक्षा से वंचित कर इसी तरह के काम में लगा देते हैं। सबसे ज्यादा दुख तो इस बात  का होता है कि इनके पिता जो खुद कमाकर इन्हें बेहतर शिक्षा और भोजन मुहैया करा सकते हैं वो इन बच्चों द्वारा मांगकर लाए पैसों से शराब और अन्य नशे का सेवन करते हैं।


आज समाज के सामने यह बहुत बड़ी समस्या है, जिसे आप और हम ही बढ़ावा दे रहे हैं। समाज का हर व्यक्ति आज किसी न किसी प्रकार की परेशानी का सामना कर रहा है उसे लगता है कि अगर शनि भगवान वाली बांल्टी में एक सिक्का डालेगा तो उसे समस्या से मुक्ति मिल जाएगी, ऐसा करने पर इंसान सुख का अनुभव करता है। 

अरे भैया सचमूच सुख की अनुभूति तो तब मिलेगी जब हम किसी भीख मांगते नौजवान को सहीं रास्ता दिखाएंगे, भिक्षावृत्ति के शिकार छोटे-छोटे बच्चों के माता-पिता को खोजकर उन्हें बेहतर जिंदगी जीने के उपाय सुझाएंगे, बूढ़े असहायों को दर-दर की ठोंकरे न खानी पड़े इसके लिए हमें चकाचौंध और दिखावे वाली पश्चिमी सभ्यता को भूलकर हमें अपनी भारतीय संस्कृति को जीवंत करना होगा, जहां माता-पिता को पूजा जाता है। तब हम एक बेहतर समाज की कल्पना कर सकते है। 


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