Sunday 26 April 2015

इंसानियत से बड़ा कोई मजहब और कोई धर्म नहीं


आज तक कई सारे मीडिया प्रशिक्षण संबंधी सेमीनार औऱ संगोष्ठियों में शामिल हुआ। तमाम तरह की बातों और विमर्श का गवाह भी बना, मगर आज तक यह नहीं समझ पाया कि किसी घटना के वक्त एक पत्रकार का धर्म क्या होना चाहिए..? रविवार 26 अप्रैल की शाम घर पर टीवी ऑन किया तो (itv) मीडिया ग्रुप के India News नामक एक समाचार चैनल पर काठमांडू में भूकंप की तबाही पर रिपोर्टर लाइव रिपोर्टिंग कर रहा था। चैनल के विजुअल में रिपोर्टर खून से लहूलूहान महिला के सामने अपने चैनल का माईक लेकर सवाल कर रहा है। चैनल की ताजा तस्वीरों में साफ-साफ दिखाई दे रहा था कि महिला अपने आंख पर हाथ रखी हुई है और वहां से खून बह रहा था युवती दर्द से तड़प रही थी। प्राथमिक चिकित्सा की तलाश में भागते महिला  के परिजनों के मना करने के बावजूद रिपोर्टर पता नहीं अपना कौन सा धर्म निभा रहा था, बार-बार रिपोर्टर अपने चैनल का माइक मुंह के सामने लगा दे रहा था।
मुझे लगता है कि अगर आपके अंदर मानवता नहीं है तो आपको यह भी हक नहीं है किसी के मुसीबत के वक्त सहायता करने के बजाए उपर से रूकावट बनें। अगर कोई चैनल अथवा रिपोर्टर सबसे तेज बनने, नाम और टीआरपी हड़पने की होड़ में इस तरह के कृत्य को अपना संस्कार समझने की भूल करने लगे तो समाज इस बात को कभी स्वीकार नहीं करेगा। इंसान जिंदगी और मौत से अगर जूझ रहा हो तो ऐसे मौके पर रिपोर्टर को चाहिए कि कम से कम इंसानियत के वास्ते पीढ़ित से संवाद करने की मुर्खता न करे। ऐसे मौको पर जहां तक मुझे लगता है अगर आपके अंदर इंसानियत की लौ बूझ चुकी है तो आप अपने हिसाब से भी विजुअल के माध्यम से घटना की जानकारी अपने चैनल के माध्यम दे सकते है। आज पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है अगर इस स्तंभ को स्थापित करना है तो देश भर में होने वाले विमर्श औऱ संगोष्ठी में इन खामियों पर जरूर बात होनी चाहिए। आज मुझे सुनी वह घटना फिर याद आ रही है जब एक पत्रकार को यह पता चलता है कि घटना के वक्त जिंदगी और मौत से जुझते जिस व्यक्ति के विजुअल दिखाकर वह रिपोर्टिंग कर रहा था उसकी अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है। पत्रकार का दिल रो देता है जब उसे पता चलता हैं कि अगर चंद मिनट पहले अगर अस्पताल पहुंच पाता तो शायद जान बच भी सकती थी। क्या कोई व्यक्ति ऐसे शख्स को भी माफ करेगा जो जाम में फंसी एम्बुलेंस के सामने दो कारों को और खड़ा करवाकर अपने कैमरे का एंगल मिला रहा हो और एम्बुलेंस को बाहर निकालने का प्रयास करने वाले लोगों के मना करने पर उन्हीं पर झल्ला रहा हो। एक तरफ पत्रकारिता धर्म है तो दूसरी तरफ इंसानियत का धर्म। इन दोनों में से मुझे लगता है इंसानियत से बड़ा कोई मजहब और कोई धर्म नहीं हो सकता
http://omprakashpawar.blogspot.in/2016/04/the-expert-s-note_4.html