Sunday, 1 May 2016

मजदूर दिवस पर जरुरत है, इंसानियत को अपने अंदर जगाने की

जरा सी गलती पर हाथ उठा देते हो... बीमार होने पर गालियाँ देते हो... जरुरत से ज्यादा काम कराते हो... थोडी देर क्या हुई मजदूरी काट लेते  हो... उनकी बनाई इमारत का नामकरण करते हो...  बनाने वाले को फुटपाथ पर सुलाते हो... उन भोले-भाले लोगों को यह भी नहीं मालूम कि उनके नाम पर मिठाई खाकर आज  तुम मजदूर दिवस मनाते हो...
मत भुलो वह किसी का पिता है तो कोई किसी की मां तो कोई  बुढे़ मां-बाप का सहारा... वो मेहनत की सुखी रोटी भी पचा जाते हैं...  और जो हराम का घी हक छीनकर खाते है सैकड़ों बीमारियाँ उसे खा जाती है...  😔 #मजदूर #दिवस #समय #बलवान #होताहै

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Wednesday, 27 April 2016

भारत देश की कुछ प्रमुख अॉनलाइन पत्रिकाओं के लिंक...

भारत देश की कुछ प्रमुख अॉनलाइन पत्रिकाओं के लिंक...

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Thursday, 14 April 2016

वर्धा के केलझर में छिपा ऐतिहासिक पिटारा... पढ़िए बाबा साहब (डॉ. भीमराव अंबेडकर) से जुड़ी कुछ रोचक बातें

नागपुर वर्धा हाई-वे पर स्थित सेलू तहसील

 का केलझर गांव

एक दिन अचानक वर्धा जिले में नागपुर वर्धा हाई-वे पर स्थित सेलू तहसील के केलझर गांव जाना हुआ यहां कई ऐतिहासिक खजानों को देखा। यहां भगवान बुद्ध की सैंकड़ो वर्ष पुरानी मूर्ति भी दयनीय स्थिति में रखी हुई है जिसकी सुध लेने वाला भी कोई नहीं है। 
स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां ऐसी ही एक बड़ी मूर्ति कुछ साल पहले चीन से आए कुछ लोग अपने साथ ले गए। यहां आज भी आसपास के क्षेत्रों में घर की नींव की खुदाई हो या कुएं की खुदाई में कुछ न कुछ इतिहास के साक्ष्य जरूर मिलते हैं। पता नहीं इतिहास के जानकारों ने इस स्थान की कितनी सुध ली। अगर सुध ली होती तो आज यहां की धरोहर इस तरह दीमक का शिकार नहीं हो रही होती। 
एक स्थानीय भिक्षुक ने बताया कि यहां इतिहास का खजाना है वे बताते हैं यहां एक गणेश भगवान का ऐतिहासिक मंदिर भी है जहां कई श्रृद्धालु दर्शन के लिए आते हैं साथ ही यहां गणेश मंदिर के पास एक रहस्यमय बावली के अंदर गुफा  का दरवाजा है जो कि विशेष मंत्रोच्चार के बाद खुलता है जहां से तीन रास्ते निकलते हैं जो कि एक पवनार (विनोबा भावे की ऐतिहासिक जगह), दुसरा बोरधरन और तीसरा अंन्यंत्र जगह पर जाता है। 
आज जरूरत है हमें ऐसे इतिहास को सहज कर रखने की जिसे हमारी आने वाली पीढ़ियां भी देख पाएं और इतिहास से कुछ सीख पाएं। कहीं ऐसा न हो कि बाहर के देशों के लोग हमारे यहां आकर हमारी धरोहर के बारे में हमें ही बताएं। आज जरूरत है कि हम स्वयं इस इतिहास के पिटारे को जाने और दुनिया को बताएं। 

आइए जानते हैं बाबा साहब के जीवन की कुछ प्रेरणाप्रद और रोचक बातें ...

उस वक़्त की है जब बाबासाहब अपनी अंतिम पुस्तक  "बुद्ध और उनका धम्म" लिख रहे थे। उस वक़्तवो बंगला न. 26, अलीपुर रोड, दिल्ली में रहते थे। एक शाम खाना खाने के बाद लगभग 8 बजे के आसपास वो अपने अध्धयन कक्ष में गए और लिखना शुरू कर दिया। उनके निजी सहयोगी 'नानकचन्द रत्तू ' जरूरी काम निबटा कर उनकी कुर्सी के पास खड़े हो गए और उनके आदेश

की प्रतीक्षा करने लगे। कुछ देर बाद बाबा साहब ने हल्की सी नज़रें ऊपर उठाई और रत्तू जी से कहा कि तुम जाकर सो जाओ, सुबह आ जाना।
अपने साहब का आदेश पाकर वो चले गए। रोज़ाना की तरह सुबह लगभग 8 बजे ही रत्तू बाबासाहब के पास पहुँचे। उन्होंने देखा कि जिस अवस्था मे वो बाबा साहब को छोड़कर गए थे ठीक उसी अवस्था में बाबा साहब अपनी कुर्सी पर बैठकर लिख रहे थे।

उन्हें लिखते लिखते लगभग 12 घण्टे हो चुके थे। रत्तू जी चुपचाप उनकी कुर्सी के बराबर में खड़े हो गए।
उन्हें खड़े हुए बहुत देर ही गयी लेकिन बाबा साहब ने ऊपर नज़र उठाकर ही नही देखा। वो अपने लेखन में इतने व्यस्त थे कि उन्हें किसी बात का होश नही था।

किसी साधक की साधना को भंग करना हर किसी के बस की बात नही होती। वो बाबा साहब की साधना ही थी। रत्तू जी, बाबा साहब का ध्यान अपनी तरफ लाने के लिए मेज पर रखी कुछ किताबो को उठाकर ठीक ढंग से रखने लगे। 
तब बाबासाहब ने हल्की सी नज़र उठाई और रत्तू जी से कहा - रत्तू तुम अभी गए नही। रत्तू जी उनके पैरोँ के पास बैठ गए और आँखों में आंसू भरकर कहने लगे - बाबासाहब सुबह के 8:30 बज चुके है। आपको 12 घण्टे हो चुके है। आखिर आप इतनी महनत क्यों कर रहे हो? बाबासाहब ने कहा - रत्तू, मेरा समाज अभी बहुत पीछे है। मेरे लोग अभी भी दिशाहीन है। मेरे मरने के बाद मेरी ये किताबे ही तो उनको राह

दिखाएंगी। अब मै पूरे देश में, हर घर में तो नही जा सकता लेकिन मेरा साहित्य जरूर जायेगा। लोग मेरे विचारो को समझ पाएंगे। मेरे सिद्धांत, विचार, दर्शन और आदर्श मेरी किताबो में ही मिलेंगे। इसलिए मै इतनी मेहनत कर रहा हूँ।

भारत को संविधान देने वाले महान नेता डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था। डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं व अंतिम संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर जन्मजात प्रतिभा संपन्न थे।

भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे उस समय अछूत और निम्न वर्ग माना जाता था। बचपन से भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) अपने  परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव होता देखते आ रहे थे। भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था। अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्यरत थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे। भीमराव के पिता सदैव अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।

1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो वर्ष पश्चात् अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई। बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुए की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे- बलराम, आनंदराव और भीमराव व दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन परिस्थितयों मे जीवित बच पाए। अपने भाइयों और बहनों में केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके पश्चात् उच्च शिक्षा पाने में सफल हुए। अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम "अंबावडे" पर आधारित था।

8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है। 
अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी। 15 अगस्त, 1947 को जब भारत स्वतंत्रता हुआ व कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो अंबेडकर को देश के पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया गया, जिसे अंबेडकर ने स्वीकार कर लिया। 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया।

14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने स्वयं व अपने समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया। अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण कर पंचशील को अपनाते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया। अंबेडकर 1948 से मधुमेह से पीड़ित थे। जून से अक्टूबर 1954 तक वे बहुत बीमार रहे इस दौरान वे नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त रहे। 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी का निधन हो गया।


बाबा साहब से जुडी़ कुछ महत्वपूर्ण जानकारी... 

प्रश्न 1- डॉ अम्बेडकर का जन्म कब हुआ था
उत्तर- 14 अप्रैल 1891

प्रश्न 2- डॉ अम्बेडकर का जन्म कहां हुआ था
उत्तर- मध्य प्रदेश  इंदौर के  महू छावनी  में हुआ था

प्रश्न 3- डॉ अम्बेडकर के पिता का नाम क्या था
उत्तर- रामजी मोलाजी सकपाल था

प्रश्न 4- डॉ अम्बेडकर की माता का नाम क्या था
उत्तर- भीमा बाई 

प्रश्न5- डॉ अम्बेडकर के पिता का क्या करते थे
उत्तर- सेना मैं सूबेदार थे 

प्रश्न 6- डॉ अम्बेडकर की माता का देहांत कब  हुआ था
उत्तर-1896

प्रश्न 7- डॉ अम्बेडकर की माता के  देहांत के वक्त उन कि आयु क्या थी 
उत्तर- 5  वर्ष

प्रश्न8- डॉ अम्बेडकर किस जाती से थे
उत्तर- महार जाती

प्रश्न 9- महार जाती को कैसा माना जाता था
उत्तर- अछूत (निम्न वर्ग )

प्रश्न10- डॉ अम्बेडकर को स्कूल मैं कहां बिठाया जाता था
उत्तर- क्लास के बहार

प्रश्न 11- डॉ अम्बेडकर को स्कूल मैं पानी कैसे पिलाया जाता था
उत्तर- ऊँची जाति का व्यक्ति ऊँचाई से पानी उनके हाथों परडालता था

प्रश्न12- बाबा साहब का विवाह कब और किस से हुआ
उत्तर- 1906 में रमाबाई से

प्रश्न 13- बाबा साहब ने मैट्रिक परीक्षा कब पास की
उत्तर- 1907 में

प्रश्न 14- डॉ अम्बेडकर के बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लेने से क्या हुआ
उत्तर- भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये

प्रश्न 15- गायकवाड़ के महाराज ने डॉ अंबेडकर को पढ़ने कहां भेजा
उत्तर- कोलंबिया विश्व विद्यालय न्यूयॉर्क अमेरिका भेजा

प्रश्न 16- बैरिस्टर के अध्ययन के लिए बाबा साहब कहां और कब गए
उत्तर- 11 नवंबर 1917 लंदन में

प्रश्न 17- बड़ौदा के महाराजा ने डॉ आंबेडकर को अपने यहां किस पद पर रखा
उत्तर- सैन्य सचिव पद पर

प्रश्न 18- बाबा साहब ने सैन्य सचिव पद को क्यों छोड़ा
उत्तर- छुआ छात के कारण

प्रश्न 19- बड़ौदा रियासत में बाबा साहब कहां ठहरे थे
उत्तर- पारसी सराय में

प्रश्न 20- डॉ अंबेडकर ने क्या संकल्प लिया
उत्तर- जब तक इस अछूत समाज की कठिनाइयों को समाप्त ने कर दूं तब तक चैन से नहीं बैठूंगा

प्रश्न 21- डॉ अंबेडकर ने कौनसी पत्रिका निकाली
उत्तर- मूक नायक 

प्रश्न 22- बाबासाहेब वकील कब बने
उत्तर- 1923 में 

प्रश्न 23- डॉ अंबेडकर ने वकालत कहां शुरु की
उत्तर- मुंबई के हाई कोर्ट से 

प्रश्न 24- अंबेडकर ने अपने अनुयायियों को क्या संदेश दिया
उत्तर- शिक्षित बनो संघर्ष करो संगठित रहो 

प्रश्न 25- बाबा साहब ने बहिष्कृत भारत का प्रकाशन कब आरंभकिया
उत्तर- 3 अप्रैल 1927 

प्रश्न 26- बाबासाहेब लॉ कॉलेज के प्रोफ़ेसर कब बने
उत्तर- 1928 में

प्रश्न 27- बाबासाहेब मुंबई में साइमन कमीशन के सदस्य कब बने
उत्तर- 1928 में

प्रश्न 28-  बाबा साहेब द्वारा विधानसभा में माहर वेतन बिल पेश कब हुआ
उत्तर- 14 मार्च 1929

प्रश्न 29- काला राम मंदिर मैं अछुतो के प्रवेश के लिए आंदोलन कब किया
उत्तर- 03 मार्च 1930

प्रश्न 30- पूना पैक्ट किस किस के बीच हुआ
उत्तर- डॉ आंबेडकर और महात्मा गांधी

प्रश्न 31- महात्मा गांधी के जीवन की भीख मांगने बाबा साहब के पास कौनआया
उत्तर- कस्तूरबा गांधी

प्रश्न 32- डॉ  अम्बेडकर को गोल मेज कॉन्फ्रंस का निमंत्रण कब मिला
उत्तर- 6 अगस्त 1930

प्रश्न 33- डॉ अम्बेडकर ने पूना समझौता कब किया
उत्तर- 1932

प्रश्न 34- अम्बेडकर को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानचार्य नियुक्त कियागया
उत्तर- 13 अक्टूबर 1935 को,

प्रश्न 35- मुझे पढे लिखे लोगोँ ने धोखा दिया ये शब्द बाबा साहेब ने कहां कहे थे       
उत्तर- आगरा मे 18 मार्च 1956

प्रश्न 36- बाबा साहेब के पि. ए. कोन थे
उत्तर-  नानकचंद रत्तु

प्रश्न 37- बाबा साहेब ने अपने अनुयाइयों से क्या कहा था
उत्तर- इस करवा को मै बड़ी मुस्किल से यहाँ तक लाया हु ! इसे आगे नहीं ले जा सकते तो पीछे मत जाने देना

प्रश्न 38- देश के  पहले कानून मंत्री कौन थे
उत्तर- डॉ अम्बेडकर

प्रश्न 39- स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना किस ने की
उत्तर- डॉ अम्बेडकर

प्रश्न 40- डॉ अंबेडकर ने भारतीय संविधान कितने समय में लिखा
उत्तर- 2 साल 11 महीने 18 दिन

प्रश्न 41- डा बी.आर. अम्बेडकर ने  बौद्ध धर्मं कब और कहा अपनाया
उत्तर- 14 अक्टूबर 1956,  दीक्षा भूमि,   नागपुर

प्रश्न 42- डा बी.आर. अम्बेडकर ने  बौद्ध धर्मं कितने लोगों के साथ अपनाया
उत्तर- लगभग 10 लाख

प्रश्न 43- राजा बनने के लिए रानी के पेट की जरूरत नहीं,तुम्हारे वोट की जरूरत है ये शब्द किस के है
उत्तर- डा बी.आर. अम्बेडकर

प्रश्न 44- डा बी.आर. अम्बेडकर के दुवारा लिखित महान पुस्तक का क्या नाम है
उत्तर- दी बुद्ध एंड हिज धम्मा

प्रश्न 45- बाबा साहेब को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया
उत्तर- भारत रत्‍न (1990)

प्रश्न 46- बाबा साहेब ने किस राजनैतिक पार्टी का गठन किया 
उत्तर- रिपब्लिकन पार्टी

प्रश्न 47- बाबा साहब ने कितनी प्रतिज्ञाएं की
उत्तर- 22

प्रश्न 48- संविधान निर्माता किसे माना जाता है
उत्तर- डॉ भीमराव अंबेडकर

प्रश्न 49- डॉ आंबेडकर ने कौन कौन सी डिग्री हासिल की
उत्तर- एम. ए , पी.एच.डी.,(कोलम्बिया ) डी.एस.सी.,(लंदन) एल. एल. डी., (कोलम्बिया) डी.लिट.(उस्मानिया ) बार. अंट. ला.(लंदन)

प्रश्न 50- बाबा साहब ने किस राजनैतिक  पार्टी का गठन किया
उत्तर- रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया

प्रश्न 51- बाबा साहेब का महा परीनिर्वाण कब हुआ 
उत्तर- 6 दिसंबर 1956

प्रश्न 52 डा बी.आर. अम्बेडकर ने अंतिम सांस कहा ली
उत्तर- 26, अलीपुर रोड दिल्ली

नोट: आप से निवेदन है की उपरोक्त डाटा में कोई गलती है तो उसे सहीं करे या बताये। 

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Saturday, 9 April 2016

VIDEO: केरल मंदिर में हुए भीषण हादसे के लिए हम सभी दुआ करते है, जल्द स्थिति सामान्य हो... हेल्पलाइन नंबर : 0474 2512344, 949760778, 949730869

केरल के कोल्‍लम जिले के पुत्तिंगल मंदिर में आज सुबह 3 बजे के करीब भीषण आग गई। पुलिस के मुताबिक, इस भीषण आग के चलते हुए हादसे में 90 लोगों की मौत हो गई 350 लोग घायल हो गए हैं। पीएम मोदी ने कहा कि मरने वाले लोगों के निकटतम संबंधी को दो-दो लाख रुपये और घायलों को पचास 50-50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाएगा।

VIDEO...https://youtu.be/sR_ewiUbY6c
मंदिर में उत्‍सव के दौरान पटाखों में आग लगने की वजह से यह हादसा हुआ। सूत्रों के मुताबिक, डेढ़ किलोमीटर की दूरी तक इस आग का असर पड़ा है। केरल में पारंपरिक रूप से इस उत्सव में प्रथाओं की समाप्ति के बाद आतिशबाजी की जाती है। मंदिर की छत पूरी तरह से जल कर खाक हो गई। साथ ही मंदिर का एक हिस्सा भी गिर गया है।

हेल्पलाइन नंबर :  0474 2512344, 949760778, 949730869 
 जिस समय यह हादसा हुआ, वहां 10 हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे। घायलों को त्रिवेंद्रम मेडिकल कॉलेज समेत अन्य अस्‍पतालों में भर्ती करवाया गया है। 10 अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था की गई है।
 आतिशबाज़ी को लेकर हो रही होड़ यानि Competitive Fireworks की इजाज़त नहीं थी, बावजूद इसके ऐसा हुआ। पीटीआई न्यूज एजेंसी के मुताबिक, पुलिस ने मंदिर प्रशासन के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है।
पुलिस ने बताया कि यह दुर्घटना गोदाम ‘कंबपुरा’ में चिनगारियां गिर जाने पर हुई। इसके कारण तड़के साढ़े तीन बजे भारी आवाज के साथ भीषण विस्फोट हुआ। विस्फोट की आवाज एक किलोमीटर के दायरे तक सुनी जा सकती थी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बिजली आपूर्ति के ठप्प हो जाने के कारण पूरा इलाका अंधेरे में डूब गया और लोग इधर-उधर दौड़ने लगे।

वरिष्ठ पुलिस और जिला अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच चुके हैं। आग को काबू में कर लिया गया है। अपने सभी चुनावी कार्यक्रम रद्द करके मुख्यमंत्री ओमान चांडी घटना स्थल की ओर रवाना हो चुके हैं।

पीएम ने ट्वीट कर दुख जताया... 
PM has directed that no protocol formalities be observed on his arrival in Kerala & focus remains on relief & rescue operations in Kollam.

पीएम मोदी भी हालात का जायजा लेने के लिए केरल जा रहे हैं। पीएम मोदी भी हालात का जायजा लेने के लिए केरल जा रहे हैं। उन्होंने ट्वीट करके संवेदना व्यक्त की।

मुख्यमंत्री ने कहा- यह सब बिल्कुल अभूतपूर्व...
ओमन चांडी ने इस हादसे और उपजी स्थिति को ‘अभूतपूर्व’ और ‘खतरनाक’ बताया। उन्होंने कहा कि दुर्घटना स्थल पर बचाव अभियान पूरा हो चुका है। अब सरकार का ध्यान घायलों को अच्छे से अच्छा उपचार मुहैया कराने पर है। मृतकों की संख्या पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा कि संख्या बढ़ेगी क्योंकि उन विभिन्न अस्पतालों से खबरें आ रही हैं जहां घायलों को भर्ती कराया गया है।

Friday, 8 April 2016

'भारत माता की जय' पर वैदिक जी की स्वागत योग्य टिप्पणी...

'भारत माता की जय' पर देश भर में सहमति और असहमति का दौर चल रहा है... ऐसी स्थिति में हमें रूककर थोडा समझना होगा संभलना होगा...  कहीं हम अपने आजादी के वीरों का भी कहीं असम्मान तो नहीं कर रहे।
पत्रकार, टिप्पणीकार और आलोचक वेदप्रताप वैदिक जी की कलम से यह लेख। 

चमत्कार: आल्हा-ऊदल मैहर के 'त्रिकूट पर्वत' पर विराजमान मां शारदा को आज भी चढ़ाते हैं फूल


आज हिंदुस्तान में कई ऐसी धार्मिक मान्यता और चमत्कार है जिन्हें जानने के लिए हमें वेदों और पुराणों का ही सहारा लेना पड़ता है। ऐसी ही ऐतिहासिक धार्मिक जगह है मध्यप्रदेश के सतना जिले में, नवरात्र में मैहर की शारदा भवानी के दर्शन के लिए यहां भारी भीड़ उमड़ती है. मान्यता है कि जो भी यहां अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मुराद ज़रूर पूरी होती है. आज हम आपको दिखा रहे हैं शारदा भवानी की आरती. इस मंदिर में रोज़ रात को पुजारी पट बंद करके जाते हैं और जब सुबह मंदिर का ताला खोलते हैं, तो एक ताज़ा फूल देवी की प्रतिमा पर चढ़ा हुआ मिलता है. 


लोगों को हैरत भी होती है कि बंद तालों के अंदर कौन आकर मां को फूल चढ़ा जाता है. मान्यता है कि सबसे पहला फूल आल्हा-ऊदल मैहर के त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मां शारदा को चढ़ाते हैं. उन्हें
देवी मां ने ही आशीर्वाद दिया था कि हमेशा उनका प्रथम पूजन वही करेंगे. पूजा से पहले सुबह लोगों को पवित्र सरोवर में किसी के स्नान करने की आवाजें भी सुनाई देती हैं, लेकिन कोई दिखाई नहीं देता.


आल्हा ने चढ़ाया था अपना सिर : 12वीं सदी के युग पुरष आल्हा ने महोबा से यहां आकर 12 वर्ष तक घोर तपस्या की और मां को अपना शीष भेंट किया था. मां ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान दिया. मान्यता है कि आज भी सबसे पहले आल्हा ही मां की पूजा करते हैं. हालांकि, किसी ने भी उन्हें पूजा करते नहीं देखा लेकिन, मंदिर के प्रधान पुजारी देवी प्रसाद इस बात का दावा करते हैं कि पट खुलने से पहले कई बार प्रतीत हुआ है जैसे किसी ने पूजा की हो. 



वो शक्तिपीठ, जहां मां का कंठ गिरा था : पुराणों के अनुसार, पिता के यहां अपमान होने पर मां पार्वती ने खुद को हवनकुंड में भस्म कर दिया था. तब भगवान शिव गुस्से में आ गये थे और तांडव शुरू कर दिया था. इस दौरान भगवान विष्णु ने मां के शव को खंडित करने के लिए सुदर्शन-चक्र  चलाया था. जहां-जहां मां के अंग गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई. कहा जाता है कि त्रिकुट पर्वत पर मां का कंठ गिरा था. इसी से यहां का नाम मैहर पड़ा.



जल्द पूरी होती है मन्नत : सतना जिले की पावन नगरी मैहर में मां शारदा विराजी हैं. वैसे तो मां शारदा के दर्शनों के लिए सालभर देश-विदेश के कोने-कोने से आनेवाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में इसका अलग ही महत्व है. मान्यता है कि एक बार जो मां के दर्शन करने आया, उसकी मुराद जल्दी पूरी होती है. यहां नौ दिन तक मेला लगता है और लाखों श्रद्धालु मन्नतें मांगने आते हैं.

अभी तक रहस्य है मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई : मैहर के त्रिकुट पर्वत पर मां शारदा के इस मंदिर की स्थापना कब और कैसे हुई,यह अभी तक एक रहस्य बना हुआ है. मां की मूर्ति के नीचे 10वीं सदी का एक शिलालेख है.

इस शिलालेख में अंकित है कि ओड़िशा का एक बालक दामोदर यहां गाय चराता था और मां की आराधना करता था. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसे दर्शन दिये और उसकी इच्छापूर्ति करते हुए त्रिकुट पर्वत पर विराजमान हुईं. वहीं, एक और मान्यता यह भी है कि 2000 साल पहले आदि शंकराचार्य ने मां को यहां स्थापित किया.

Wednesday, 26 August 2015

दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल




महात्मा गांधी जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। आजादी के चंद महिनों ही हुए थे कि उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। आइए जानते हैं कि आखिर क्या-क्या हुआ था महात्मा गांधी के उन अंतिम पलों में...



30 जनवरी 1948 का दिन गांधीजी के लिए हमेशा की तरह व्यस्तता से भरा था. प्रात: 3.30 को उठकर उन्होंने अपने साथियों मनु बेन, आभा बेन और बृजकृष्ण को उठाया. दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर 3.45 बजे प्रार्थना में लीन हुए. घने अंधकार और कँपकँपाने वाली ठंड के बीच उन्होंने कार्य शुरू किया. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दस्तावेज को पुन: पढ़कर उसमें उचित संशोधन कर कार्य पूर्ण किया.


सुबह 4.45 बजे गरम पानी के साथ नींबू और शहद का सेवन किया. एक घंटे बाद संतरे का रस पीकर वे पत्र-व्यवहार की फाइल देखते रहे. चार दिन पहले सरदार पटेल द्वारा भेजा गया एक पत्र वे अकथनीय वेदना के साथ पढ़ते रहे. जिसमें अपने और नेहरु के आपसी मतभेद और मौलाना के साथ विवाद के कारण उन्होंने इस्तीफा देने के लिए गांधीजी से अनुमति माँगी थी. सेवाग्राम के लिए पत्र भेजने की सूचना वे किसी को दे रहे थे, उस वक्त मनुबेन ने पूछा कि यदि दूसरी फरवरी को सेवाग्राम जाना होगा, तो किशोर लाल मशरुवाला को लिखा गया पत्र न भेजकर उनसे मुलाकात ही कर लेंगे और पत्र दे देंगे. महात्मा का जवाब था ''भविष्य किसने देखा है? सेवाग्राम जाना तय करेंगे, तो इसकी सूचना शाम की प्रार्थना सभा में सभी को देंगे.'' उपवास से आई कमजोरी को दूर करने के लिए उन्होंने आधे घंटे की नींद ली और खाँसी रोकने के लिए गुड़-लौंग की गोली खाई. लगातार खाँसी आने के कारण मनु बेन ने दवा लेने की बात की, तो उन्होंने जवाब दिया ''ऐसी दवा की क्या आवश्यकता? राम-नाम और प्रार्थना में विश्वास कम हो गया है क्या?''


सुबह 7.00 बजे से उनसे भेंट करने वाले लोग आने लगे. राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरु और प्यारेलाल आदि के साथ चर्चा की. इसके बाद बापू ने मालिश, स्नान, बंगला भाषा का अभ्यास आदि कार्य पूरे किए.



सुबह 9.30 बजे टमाटर, नारंगी, अदरक और गाजर का मिश्रित जूस पीया. उपवास के बाद अभी दूसरा आहार लेना शुरू नहीं किया था. दक्षिण अफ्रीका के सहयोगी मित्र रुस्तम सोराबजी सपरिवार आए और उनके साथ अतीत के स्मरणों में खो गए. थकान के कारण फिर आधे घंटे लेट गए. जागने पर उन्हें स्फूर्ति महसूस हुई. उपवास के बाद पहली बार बिना किसी के सहारे चले तो मनु बेन ने मजाक किया ''बापू, आज आप अकेले चल रहे हैं, तो कुछ अलग लग रहे हैं.'' गांधीजी ने जवाब दिया ''टैगोर ने गाया है, वैसे ही मुझे अकेले ही जाना है.''


दोपहर 12.00 बजे बापू ने दिल्ली में एक अस्पताल और अनाथ आश्रम की स्थापना के लिए डॉक्टरों से चर्चा की और मिलने आए मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल के साथ चर्चा कर सेवाग्राम जाने की इच्छा व्यक्त की. अपने प्रिय सचिव स्व. महादेव देसाई के जीवन चरित्र और डायरी के प्रकाशन के लिए नरहरि परिख की बीमारी को ध्यान में रखते हुए चंद्रशंकर शुक्ल को यह जवाबदारी सौंपना तय किया.



दोपहर करीब 1.30 बजे ठंड की गुनगुनी धूप में बापू नोआखली से लाया हुआ बाँस का टोप पहनकर पेट पर मिट्टी की पट्टी बाँधकर आराम कर रहे थे, उस समय नाथूराम गोडसे चुपचाप पूरे स्थान का निरीक्षण कर वहाँ से चला गया था.


दोपहर 2.30 बजे मुलाकात का सिलसिला फिर शुरू हुआ. दिल्ली के कुछ दृष्टिहीन लोग आवास की माँग को लेकर उनके पास आए. शेरसिंह और बबलू राम चौधरी हरिजनों की दुर्दशा के लिए बात करने आए. सिंध से आचार्य मलकानी और चोइथराम गिडवानी वहाँ की स्थिति का वर्णन करने आए. श्री चांदवानी पंजाब में सिखों में भड़के आक्रोश और हिंसा के समाचार लाए. श्री लंका के नेता डॉ. डिसिल्वा अपनी पुत्री के साथ आए. उन्होंने 14 फरवरी को श्री लंका की मुक्ति का संदेश दिया. डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने अपनी पुस्तक और फ्रंच फोटोग्राफर ने फोटो एलबम उन्हें उपहार में दी. 'टाइम' मैगजीन के मार्गरेट बर्क व्हाइट से मुलाकात की और श्री महराज सिंह ने एक विशाल सम्मेलन के आयोजन के लिए उनसे सलाह ली.


शाम 4.15 बजे सरदार पटेल इस्तीफे के संबंध में सौराष्ट्र के राजनैतिक प्रसंगों पर चर्चा के लिए उनसे मिलने आए. सरदार पटेल के साथ खूब तन्मयता से बातचीत की, लेकिन बातचीत के दौरान उन्होंने चरखा चलाना जारी रखा. शाम का भोजन पूरा हो, इसका भी ध्यान रखा.
शाम 5 बजे प्रार्थना का समय हो रहा था, लेकिन सरदार से उनकी बातचीत पूरी नहीं हो पाई थी. मनु बेन और आभा बेन ने प्रार्थना में जाने के लिए संकेत किया. जिसका उन पर कोई असर नहीं हुआ. इसके बाद सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन ने हिम्मत करके समय की पाबंदी की ओर उनका ध्यान दिलाया, तो गांधीजी तेजी से उठ गए. देर होने से नाराज हुए गांधीजी ने अपनी लाठी समान लाड़ली मनु-आभा से नाराजगी व्यक्त की. प्रार्थना सभा में प्रवेश करते समय उन्होंने मौन धारण कर रखा था और मनु-आभा के कंधों का सहारा लेकर तेज गति से चलते हुए गांधीजी को रास्ता देने के लिए लोग एक तरफ हट जाते थे. कुछ लोग नमस्कार की मुद्रा में गांधीजी दर्शन कर कृतार्थ भाव अनुभव करते थे.


प्रार्थना के लिए जाते समय रास्ते में अचानक एक आदमी सैनिक की वर्दी में उनके सामने आकर खड़ा हो गया. उसके और गांधीजी के बीच मात्र तीन कदम का फासला था. तब उसने नीचे झुककर प्रणाम की मुद्रा में सहजता से हाथ झुकाया और कहा ''नमस्ते गांधीजी'' मनु बेन ने उसे रास्ते से हट जाने के लिए कहा कि तुरंत ही उसने बलपूर्वक मनुबेन को गिरा दिया. दो हाथों के बीच छिपा रखी काले रंग की सात बोर की बेरेटा पिस्तौल की नाल गांधीजी की ओर करके उसने एक के बाद एक तीन फायर किए. धमाकों के साथ तीन गोलियां निकलीं, जो महात्मा गांधी के श्वेत वस्त्र को लहुलुहान कर गई.


वंदन की मुद्रा में झुका बापू का शरीर धीरे-धीरे आभा बेन की तरफ ढहता गया. गोडसे की तीन गोलियों का तीन अक्षर का उनका प्रतिभाव था ''हे राम!'' उस समय उनकी कमर पर लटकी घड़ी में शाम के 5 बजकर 17 मिनट हो रहे थे.

30 जनवरी 1948 के सूर्यास्त के साथ पंडित नेहरु को लगा कि हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है. चारों ओर अंधकार व्याप्त है. लेकिन दूसरे ही क्षण सत्य प्रकट हुआ और नेहरु ने कहा ''मेरा कहना गलत है, हजारों वर्षों के अंत होने तक यह प्रकाश दिखता ही रहेगा और अनगिनत लोगों को सांत्वना देता रहेगा.''


सरदार पटेल ने कहा ''आज का दिन हमारे लिए शर्म, ग्लानि और दु:ख से भरा है. जिस पागल युवक ने यह सोचकर बापू की हत्या की होगी कि उसके इस कार्य से गांधीजी के उदात्त कार्य रुक जाएँगे, तो उसकी यह मान्यता पूरी तरह से गलत साबित होगी. गांधीजी हमारे हृदय में जीवित हैं और उनके अमर वचन हमें सदैव राह दिखाते रहेंगे.''


विश्व के कोने-कोने से श्रद्धांजलि का प्रवाह बह रहा था. इनमें अनेक जानी-मानी हस्तियाँ थीं, तो सामान्य लोग भी थे. सभी की भावना एक ही थी.


ब्रिटिश सम्राट, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली, पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल, फ्रांस के प्रधानमंत्री दविदोल, स्टेफर्ड क्रिप्स, जनरल स्मट्स और प्रसिद्ध उपन्यासकार पर्ल बक ने श्रद्धांजलि दी. अनेक देशों के कई अज्ञात व्यक्तियों ने एक दिन का उपवास रखकर श्रद्धांजलि देना तय किया.


फ्रांस के समाजवादी नेता लियो ब्लूम ने सामान्य विश्व नागरिक की भावनाओं को अपने शब्दों में प्रस्तुत किया ''मैंने गांधी को देखा नहीं था, मुझे उनकी भाषा नहीं आती, मैंने उनके देश में कदम भी नहीं रखा है, लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि मानो कोई अत्यंत करीबी रिश्तेदार को खोया है.''


संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने शोक संदेश में कहा ''गांधीजी गरीब से गरीब, निराश्रित और सर्वहारा वर्गों के सहारा थे.''


ब्रिटिश नाटककार जार्ज बर्नाड शॉ ने अपनी बात व्यंग्यात्मक रूप से कही ''संसार में 'अच्छा' आदमी बनना कितना खतरनाक है!''


पाकिस्तान से मोहम्मद अली जिन्ना ने इस समय भी अपनी चिर-परिचित शैली में कहा ''गांधीजी हिंदू जाति के महान लोगों में से एक थे.''


महात्मा गांधी की मृतदेह के समीप गायी जाने वाली सर्वधर्म प्रार्थना के दो अंश उनके जीवन और मृत्यु के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर रहे थे.


अलीगढ़ के ख्वाजा अब्दुल मजीद ने कुरान-ए-शरीफ की आयतें पढ़ीं- ''हे ईमानदारों, सब्र और खामोशी के साथ खुदा की मदद माँगो, खुदा की इबादत करते हुए मरने वाले को मरा हुआ न समझो. वे जिंदा हैं, जिसे आप नहीं समझ सकते. वक्त से पहले और खुदा की मर्जी के बगैर कोई नहीं मर सकता.''


हिंदू धर्म ग्रंथ गीता में भी यही बात कही गई है कि हर प्राणी जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है. अत: इसका दु:ख नहीं मनाना चाहिए.


गांधीजी ने कहा था ''हमारी प्रजा सदियों से गुलामी में सड़ रही है, इस सड़ाँध से उपजने वाली गंदगी आज हमारे सामने बिखरी पड़ी है, जिसे हमें साफ करना है. इसके लिए पूरा जीवन भी कम है. हमारी शिक्षा यदि अलग तरीके से हुई होती, तो हम यूँ हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे होते. जब तक हम अपने काम से निराश हुए बिना उसमें पूरी तरह से लिप्त रहेंगे, तभी हमारा संघर्ष हमें नए युग के भारत में ले जाएगा.''


मेरा जीवन, मेरी वाणी बाकी सभी तो केवल है पानी।
जिसमें सत्य की जय-जयकार, मेरा जीवन वही निशानी।।


(साभार: गांधीजी के सचिव और सहायक रहे स्टीफन मर्फी की 30 जनवरी 47 की रिपोर्ट)


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